पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१०

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नवमाऽध्याय ५०७ यह पहिले शिष्ट पुरुप कभी नहीं करते थे और न काई (शिष्ट) इम समय करते हैं जो कि एक के लिये कन्रानान करकं दूसरे को दी जावे ॥१९॥ पूर्व जन्मा में भी हमने कभी शुल्क सजक मूल्य से छिपा लड़को को वेचना नहीं सुना ॥१०॥ अन्योन्यस्यान्यभीचारो भवेदामरणान्तिक एपधर्मः समासेन ज्ञेयः स्त्रीपुसयों पर ।।१०१॥ तथा नित्यं यतेयातां स्त्रीपु'सौ तु कृतक्रियौ ।। यथा नाभिचरतां नौ वियूक्तावितरेतग्म् ॥१०२।। भार्या पति का मरण पर्यन्त आपस में व्यभिचार न होना ही स्त्री पुरुषों का मतेर से श्रेष्ठ वनं जानना चाहिये |१०|| विवाह वाले स्त्री पुरुषों को सहा ऐमा यत्न करना चाहिये जिम में कमी आपस में जुदाई न हो ॥१०॥ एप स्त्रीय सयोरुतो धर्मा को गतिसंहित. । आपद्यपत्यप्राणिश्च दायभागं निबोधन ॥१०३॥ ऊर्य पितुश्च मातुश्च ममत्य भ्रावरं समम् । भजेरन्पैतृक रिक्यमनीशास्ते हि जीवताः ॥१०॥ यह भार्या और पतिका आपसमं प्रीतियुक्ति यम और सन्तान के न होने में मन्तान की प्रामि भी तुमस कहीं । अव दायभाग का सुनो ॥१०शा माता पिता के मरने पर भाई लोग मिलकर वार के रिक्य (जायदाद आदि) के बराबर भाग करें। उनके जीवते पुत्रा को अधिकार नहीं ॥१४॥ ज्येष्ठ एव तु गृहीयापियं घनमशेषतः । ।