पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५११

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. मनुस्मृति भाषानुवाद शशास्तमुपजीवेयुर्यथैव पितरं तथा ॥१०॥ ज्येष्ठेन जातमात्रेण पुत्री भवति मानवः । पितणामनणश्चैव स तस्मात्सनमर्हति ॥१०६|| (अथवा) पिता के सम्पूर्ण धन को ज्येष्ठ पुत्र ही ग्रहण करे और शेप छोटे भाई खाना कपड़ा लेवे, जैसे पिता के सामने रहते थे॥१०५।। ज्येष्ठ के उत्पन्न होने मात्र से मनुष्य पुत्र वाला कह- लाता और पिवण से हट जाता है । इस कारण ज्येष्ठ पुत्र सम्पूर्ण धन लेने योग्य है ।।१०६॥ यस्मिन्नृणं सन्नयति येन चानन्त्यमश्नुते । स एव धर्मजः पुत्रः कामजानितरान्विदुः ॥१०७॥ पितेव पालयेत्पुत्रान्ज्येष्ठो भ्रातुन यवीयसः । पुत्रयच्चापिवरन् ज्येष्ठे भ्रातार धर्मवः ॥१०८|| जिस के उत्पन्न होने से (पितृ) ऋण दूर होता है और मात्र प्राप्त होता है उसी को धर्मज पुत्र जाने । और को कामज कहते हैं ॥१०७ ज्येष्ठ धावा छोटे भाइयो का पिता पुत्र के समान पालन करे और छोटे भाई भी बड़े भाई को धर्म से पिता के समान माने ॥१०॥ ज्येष्ठः कुलं वर्धयति विनाशयति वा पुनः । ज्येष्ठः पूज्यतमा लोके ज्येष्ठः सद्भिरगर्हितः ॥१०६।। योज्येष्ठो ज्येष्ठवृत्तिः स्यान्मातेव स पितेवसः । अज्येष्ठत्तिर्यस्तु स्यात्स संपूज्यस्तु बन्धुवन् ।।११०॥