पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१२

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नवमाध्याय ५०९ ज्येष्ठ कुल को बढ़ाता है ज्येष्ठ ही कुल का नाश करता है। ज्येष्ठ ही लोगों में प्रति पूज्य है और ज्येष्ठ सत्पुरुषो से निन्दा को नही पाता ॥१०९॥ जो ज्येष्ठ श्रुति हो (पितृवत् पोपणादि करे) वह माता पिता के समान पूज्य और यदि माता पिता तुल्य पोषण श्रादिन करे तो वन्युवत् ॥११॥ एवं सह बसेयुर्या पृथवा धर्मकाम्यया । पृथग्विवर्धते वर्मस्तस्मादा पृथक्रिया ॥१११।। ॥ ज्येष्ठस्य विशउद्वारः सर्गद्रव्याञ्च यद्वरम् । ततोऽ, मध्यमस्य स्याच रीयं तु यत्रीयसः ॥११२॥ इस प्रकार विना बांटे सब भाई साथ रहे अथवा धर्म की इच्छा से सब भाई विभाग करके अलग रहैं । अलग २ मे धर्म बढ़ता है इसलिये विभाग धर्मानुकूल है ।।१११।। उद्धार (जो निकालकर भाग के अतिरिक्त भेट दियाजाय) वडेका सब द्रव्योमें से उत्तम वीसा विचलेका ४०वा तथा छोटे का ८वां भाग होना चाहिये (जावचे उसको ११६के अनुसार सव वरावर वाटलेवे ।११२ ज्येष्ठश्चैव कनिष्ठश्च सहरेतां यथे.दितम् । येऽन्येज्येष्ठकनिष्ठाम्यां तेषां स्वान्मध्यमं धनम् ।।११३॥ सपी घनजातानामाददीवानवमग्रजः। यच्च सातिशयं किञ्चिद्दशतवाप्नुयाद्वरम् ॥११४॥ ज्येष्ठ और कनिष्ठ पूर्व श्लोकानुसार उद्धार ग्रहण करें और ज्येष्ठ और कनिष्टो से जो अतिरिक्त हो उन (मध्यमो) का मध्यम भाग होना चाहिये ।।११३॥ सब प्रकार के धनो मे जो श्रेष्ठ धन हो उसको और जो सबसे अधिक हो उसको तथा जो एक वस्तु