पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१३

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मनुस्मृति,भापानुवाद ८ १० वस्तुओ मे अधिक उत्तम हो उसको भी ज्येष्ठ हण करे।११४॥ उद्धारी न दशस्त्रस्ति संपन्नानां स्वकर्मसु । यत्किञ्चिदेव देयं तु ज्यायसे मानवर्धनम् ॥११५॥ एवं समृद्धृतोद्वारे समानंशान्प्रकल्पयेत् । उद्धारे ते त्वेपामियं स्यादंशकल्पना ॥११६॥ पूर्व श्लोक मे देश में श्रेष्ठ वन्तु बड़ा पावे इत्यादि उद्वार कहा परन्तु स्वक्रमों में समृद्ध भ्राताओं का नहीं है किन्तु वे जो कुछ ज्येष्ठ को दे देवें, वहीं सम्मानार्थ है ॥११५॥ पूर्वोक्त प्रकार मे उद्धार निकलने पर वरावर भाग करें यदि कोई उद्धार न निकाले तो आगे कहे अनुमार भाग वारे ॥११॥ एकाधिकं हरेज्ज्येष्ठः पुत्रोऽध्यर्ध ततानुजः । अंशमंशं यवीयांस इति धर्मा व्यवस्थितः ॥१७॥ स्वेभ्योऽशेभ्यस्तु कन्याम्पः प्रद्युांतरः पृथक् । स्वात्स्वादशाचतुर्मागं पतिताः स्युरदित्सवः ।।११८॥ ज्येष्ठ पुत्र का एक भाग अधिक (अर्थान् दो भाग) और उस से छोटा डेढ़ माग और शेष छोटे सब एक २ ग्रहण करें। इस प्रकार धर्म की व्यवस्था है ।।११७|| भाई लोग अपने २ भागों मे से चौथा भाग यहनो को देखें। यदि देना न चाहे तो पतित हो ॥११८॥ अजाविक सैकशन बातु विपर्म भजेत् । अजाविक तु विपमं ज्येष्ठस्यैव विधीयते ।११६॥ यत्रीयान् ज्येष्ठमार्यायां पुत्रमुत्पादयेयदि ।