पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१९

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मनुस्मृति भाषानुवाद- वह दूसरे गोत्रसे प्राप्त हुवा भी उसके भाग को ग्रहण करे॥१४१|| (जो उत्पादक पिता ने अन्यको दे दिया उस) उत्पन्न करने वाले पिताके गोत्र और धन को दत्तक कभी न पावे क्योकि पिण्ड- प्रास आदि देना ही गोत्र और धन का अनुगामी है और दिये हुवे पुत्रका पिण्डादि उस जनक पिता से छूट जाता है ।।१४२।। अनियुक्ता मुतश्चैव पुत्रिण्याप्तश्च देवरात् । उभी तो नाहतो मार्ग जारजातककाम्जौ ॥१४३॥ नियुक्तायामपि पुमाबार्या जातोऽविधानतः । नैवाई पैतृक रिवयं पतितात्पादितोहि सः ॥१४४॥ , विना नियोग विधि से उत्पन्न हुवा पुत्र और लड़के वाली का नियोग विधि से भी देवर से उत्पन्न हुवा पुत्र ये दोनो भाग को नहीं पाते । क्योंकि ये दोनों जार से उत्पन्न और कामन हैं ॥१४३|| नियुक्त स्त्री में भी विना विधान उत्पन्न हुवा पुत्र (अर्थात् घृतादि लगाकर जिस नियम से रहना चाहिये उसके विपरीत करने वालो से उत्पन्न पुत्र) क्षेत्र वाले पिता के धन को पाने योग्य नहीं है। क्योंकि वह पतित से उत्पन्न हुवा है ॥१४॥ हरेत्तत्र नियुक्तायां जातः पुत्रो यथौरसः । क्षत्रिकस्य तु तद्वीजं धर्मतः प्रसपश्च सः ॥१४॥ धनं योविभृयाद्भातुमृतस्य स्त्रियमेव च । सो पत्यं प्रातुरुत्पाद्य दधात्तस्यैव तद्धनम् ॥१४६॥ नियुत्ता में उत्पन्न हुआ पुत्र, क्षेत्र वाले पिता का धन लेवे जैसे औरस पुत्र लेता है क्योकि वह धर्म से उत्पन्न हुवा, इस कारण क्षेत्र वाले का बीज समझा जाता है ।।१४।। जो मरे भाई की