पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२१

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५१८ मनुस्मृति भाषानुवाह "पिता के धनसे ब्राह्मणी का पुत्र तीन अंश लेवे और चत्रिया का सुत दो अंश तथा वैश्या का पुत्र डेढ़ अंश और शूद्रा का एक अंश लेवे ॥१५१॥ अथवा (बिना उद्धार के निकाले) सम्पूर्ण धन के दश भाग करके धर्म का जानने वाला इस विधि से धर्य विभाग करे किना१५२॥" "चतुरोंशान्हरेद्विा स्त्रीनंशान्तत्रियासुतः । वैश्यापुत्रो हरेव द्वयंशमर्श शूद्रासुतो हरेत् ।।१५३।। यद्यपि स्पाच सत्पुत्रोऽप्यसलुत्रोऽपि वा भवेत् । नाधिक दशमादयाच्छूदापुत्राय धर्मतः ॥१४॥"

  • (१० भागों में से) चार अंश ब्राह्मणी का पुत्र और क्षत्रिया

का तीन अंश तथा वैश्या का पुत्र दो अंश और शूद्रा का पुत्र दे। अंश ले ।।१५।। यद्यपि सत्पुत्र हो वा असत्पुत्र परन्तु धर्म से शूद्रा के पुत्र को दशांश से अधिक न दे ॥१५४॥" "ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूदापुत्रोन रिस्थमा । यदेवास्य पिता दद्याचदेवास्य धनं भवेत् ॥१५॥ समवर्णासु ये जाताः सर्वेपुत्रा द्विजन्मनाम् । उद्धार ज्यायसे दत्वा भजेरनितरे समम ।।१५६॥ "बामण क्षत्रिय वैश्यो का शूद्रा से उत्पन्न हुवा पुत्र धनका भागी नहीं किन्तु जो कुछ उसकारिता दे दे वही उसका बन हो ॥१५५॥ समान जातिको मार्या मे द्विजातियो से उत्पन्न हुये सब पुत्र ज्येष्ठ को उद्वार देकर शेष का सम भाग करके बांटते १५॥' 'शूद्रस्य तु सवर्णव नान्या भार्या विधीयते । तस्यां गावाः समांशाः स्युर्यदि पुत्रशतं भवेत् ।।१५७|| पुत्रान बादश यानाह नृणां स्वायंभुवो मनुः । तेषां पड्बन्धदायादा पडऽ दायादबान्धवा. ।।१५८।'