पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२३

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मनुस्मृति भाषानुवाद हैं (इनके लक्षण १६६ मे कहेंगे) ॥१६॥ यादृशफलमाप्नोति कुप्नवैः सन्तरञ्जलम् । तादृशं फलमाप्नोति कुपुत्रैः संतरंस्तमः ॥१६१॥ योकरिक्थिनी स्यातामौरसक्षेत्री सुतौ । यस्य यत्पैतृकं रिक्थं स तद् गृहीत नेतरः ॥१६२|| धुरी (टूटी फूटी) नावों से जल में तरता हुवा जिस प्रकार के फ्ल का पाता है उसी प्रकार का फल कुपुत्रों से दुःख को तिरने वाला पाता है ॥१६शा यदि अपुत्र के क्षेत्र मे नियोग विधि से एक पुत्र हो, और किसी प्रकार दूसरा औरस पुत्र भी होजावे तो दोनों अपने २ पिता के धन को ग्रहण करें, अन्य का अन्य का पुत्र न ले ॥१॥ एकएवौरसपुत्रः पित्र्यस्य वसुनः प्रभुः ।। शेषाणामानृशंस्यार्थ प्रदयाच प्रजीवनम् ॥१६३।। पष्ठं तु क्षेत्रजस्याणं प्रदद्यात्पैतृकाढूनात् । और बिमजन्दायं पित्र्यं पञ्चमेव वा ॥१६॥ एक औरस पुत्र ही पिता के धन का भागी होता है शेप सब को दया से भोजन वस्त्रादि दे देवे ॥१६॥ औरस पुत्र दाय का विभाग करता हुवा क्षेत्रन को छठा वा पांचवा भागपिश्चन से दे देवे ॥१६॥ औरसक्षेत्रजौ पुत्रौ पितरिक्थस्य भागिनी । दशापरेतुक्रमशो गोत्ररिक्यांशभागिनः ॥१६॥ स्वक्षेत्रे संस्कृतायांतु स्वयमुत्पादयेद्धि यम् ।