पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२४

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नवमाऽध्याय वमौरस विजानीयात्पुत्रं प्रथमकल्पितम् ॥१६६॥ औरस और क्षेत्रज ये दानो पुत्र (उक्त प्रकार से) पितृधन के लने वाले हों और क्रमशः शेष दस पुत्र गोत्रधन के भागी हा -||१६५॥ विवाहादि संस्कार किये हुवे अपने क्षेत्र में पाप जिन का उत्पन्न करे उसको पहिले कहा हुवा "औरस पुत्र जानियो । यस्तल्पना प्रमीतस्य क्लीवस्य व्याधितस्य वा । स्वधर्मेण नियुत्तायां स पुनः देवनः स्मृतः||१६७|| माता पिता वा दयाना यमद्धिः पुत्रमापदि । मदृश प्रीतिसंयुक्तं स ज्ञया दत्रिमः सुतः ॥१६॥ जा मृत वा नपुंसक वा अमविरोधी व्याधि से युक्त की स्त्री में नियोग विधि से उत्पन्न होवे वह क्षेत्रज पुत्र कहा है ॥१६७।। माता वा पिवा आपत्काल में जिस समान जाति वाले प्रीनियुक्त पुत्र का सङ्कल्प करके देढे वह 'पत्रिम पुत्र (दत्तक) जानने योग्य है।॥१८॥ सदृशं तु प्रकुर्याय गुणदापविचक्षणम् । पुत्रं पुत्रगुणेयुक्तं स विज्ञेयश्च कृत्रिमः ॥१६६|| उत्तयते गृहे यस्य न च जायन कस्य सः । स गृहे गूढउत्पन्नस्तस्य स्याग्रस्य तल्पजः ॥१७॥ जा समान जानि वाला और गुण द्वाप का जानने बाना नथा पुत्र के गुणों से युक्त पुर कर लिया जाने उसका कृत्रिम" पुत्र जानना चाहिये ।।१६। जिम के घर में उत्पन्न होवे और न जाता जाय कि वह किमका है बह घर में “गुढोपन्न" उम का पत्र । जिसकी कि स्त्री ने जाना है ॥१७॥ ६६