पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२५

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मनुस्मृति भापानुवाद मातापितृभ्यामुत्सृष्टं तयोरन्यतरेण । यं पुत्रं परिगृहीयादपत्रिद्धः स उच्यते ॥१७॥ पितृवेश्मनि कन्या तु यं पुत्रं जनयेद्रहः । तं कानीनं वदेनाम्ना वाढ कन्यासमुद्भवम् ।।१७२॥ ने माता पिताका आश्वासन दोनों में से किसी एक का छोड़ा हुवा है उस पुत्र को जो ग्रहण करे उसको उसका "अपविद्ध" पुत्र कहते हैं ।।१७।। पिता के घर मे जो कन्या विना प्रकट किये पुा को जने उस कन्योत्पन्न को उस के पति का “कानीन" पुत्र नाम से कहे ॥१७॥ या गर्भिणी सस्क्रिपते ज्ञाताजातापिवा सती । वाढः सगर्भो भवति सहाढ इति चोच्यते ॥१७३॥ क्रीणीयाधस्त्वपत्यार्थ मातापित्रोर्यमन्तिकान् । सक्रीतका सुतसास्य सदृशोऽसदृशो पा ॥१७३' जो ज्ञात वा अज्ञात गर्मिणी के माथ विवाह किया जाये वह उसी पति का गर्भ है और उसको 'सहोट" कहते हैं ॥ १७३ ।। सन्तान चलानेके लिये माता पिता के पाससे जिसे मोलचे लेवे वह उसके सदृश हो वा असदृश हो उसका उस का “क्रीतक । पुत्र कहते है ।। १७४ ॥ यो पत्या वापरित्यक्ता विधवावा स्वयेच्छया । उत्सादयेत्पुनर्मूला स पौनर्भव उच्यते ॥१७॥ सा चेदक्षतयोनिः स्याद्गतप्रत्यागतापि वा । पौन वेन भर्ना सा पुनः संस्कारमर्हति ।।१७६॥