पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नवमाऽध्याय जो पति की घोड़ी हुई वा विधवा स्त्री अपनी इच्छा से की भार्या होकर पुत्र को जने, उस को "पौनर्भव" पुत्र कहते १७५॥ वह सी यदि पूर्व पुरुप से मयुक्त न हुई तो इसरे पानिर्भव पति से फिर विवाह संस्कार करने के योग्य है । (अथवा

  • फिर से उसी के पास जाव तो भी पुनः विवाह संस्कार करना

योग्य है ।।१७क्षा मातापिवृषिहीना यस्त्यक्तो वा स्यादकाग्णात् । आत्मानं सरयेद्यस्मै स्वयंदसस्तु स स्मतः ॥१७७॥ यम्बामणस्तु शूद्राया कामादृत्पादयेत्सुतम् । स पारयन्नेव शवस्तस्मात्पाः स्मृतः ॥१७८।। जो माता पिता से हान वा विना पाराव निकाला हुआ अपने को जिसे दे दे, वह स्वयंदत्त' कहा है ॥१७७|| जिम का प्रात्मण शूद्रा में काम से उत्पन्न करें, वह जीता हुआ भी शब (मृतक) के तुल्य है, इस से उस को पारशव' (वा 'शोह" कहा है ॥१७॥ दास्यांना दासदास्यां वा यः शदस्य सुतो भवेत् । सोऽनुशाता हरेदंशमिति धर्मो व्यवस्थितः ॥१७६।। क्षेत्रजादीन्सुतानेजानेकादश यथोदितान् । पुत्रप्रतिनिधीनाहुः क्रियालापान्मनीषिणः ॥१०॥ धामीमें वा दास की स्त्रीमें जो शह का पुत्र हो, वह (पिताकी श्रामा से) भाग लेवे। यह शास्त्र की मर्यादा है ॥१७९|| इन उक्त क्षेत्रजादि एकादश पुत्रों को (सेवादि ) क्रिया का लोप न हेर, इस कारण पुत्र का प्रतिनिधि बुद्धिमानी ने कहा है ॥१८०||