पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२७

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मनुस्मृति भाषानुपा 2 य एतेऽभिहितः पुत्राः प्रसङ्गादन्यत्रीजनाः । यस्यतेचीजता जातास्तस्पते नेतरस्य तु ॥१८॥ प्रातणामेकजातानामेकश्चेत्पुत्रवान्भवेत् । सबीस्तांस्तेन पुत्रेण पुत्रिणो मनुस्नबीन् ॥१८२|| जोये (औरस के) प्रसङ्ग से दूसरे के बीज से उत्पन्न हुवे पुत्र कहे हैं वे जिस के बीज से उत्पन्न हुने हो उसी के हैं। दूसरे के नहीं ॥१.१॥ सहोर माइयो में एक भाई भी पुत्रवान हो तो । उन सब का पुत्र धाज्ञा (मुझ) मनु न कहा है (अर्थात् अन्य भाइयों को नियोग वा पुनर्निमाहादि नहीं करना चाहिये ) ॥१८॥ सर्वासामेकपत्नीनामेका चेत्पुत्रिणी भवेत् । सर्वास्तास्तेन पुत्रेण प्राह पुत्रवतीर्मनुः ॥१३॥ श्रेयसः श्रेयसोश्लामे पापीयान् रिक्थमर्हति । बहवश्चेत्त सदृशाः सर्वरिस्थस्य भागिनः ॥१८४ । एक पुरुष की कई स्त्रियों मे यदि एक पुत्र वाली हो तो उस पुत्र से सब को (मुझ) मनु ने पुत्र वाली कहा है ।।१८।। औरसादि पुत्रों में पूर्व २ के अभाव मे दूसरे २ नीच पुत्र धन को पाने योग्य है और यदि बहुत से समान हो तो सव धन के भागी होवे ॥१८४॥ न भ्रातरो न पितरः पत्रारिक्थहराः पितुः । पिता हरेदऽपुत्रस्य रिक्थं भ्रातरएव च ।।१८।। त्रयाणामुदकं कार्य त्रिपु पिण्डः प्रवरते । चतुर्थः सम्प्रदातेषां पञ्चमो नोपपद्यते ॥१८६॥ . ७