पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५२९

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मनुस्मृतिभावानुवाद संस्थितस्यानपत्यस्य सगात्रात्पुत्रमाहरेत् । तग यद्रिस्थनातं स्यात्तत्तस्मिन्प्रतिपादयेत् ॥१०॥ ब्राह्मण का धन राजा कभी भी न ले, यह शास्त्र की नित्य मर्यावा है (अर्थात् वेवारिस प्रामण का धन ब्राह्मणों ही को दे देवे) अन्य सब वणों का धन दायभागी न हो तो राजा ले लेवे ॥१८९॥ राजा, अपुत्र मरे ग्रहण की सन्तति के लिये समान गोत्र वाले से पुत्र दिला कर उस ब्राह्मण का जो कुछ धन हो गइ उस पुत्र को दे देवे ॥१९॥ बौत यो विघदेयाता द्वाम्मा जाती स्त्रिया घने । तयोर्यद्यस्य पित्र्यं स्यात्तत्स गृहीत नेतरः ॥११॥ जनन्यां संस्थितायां त समं सर्वे सहादरा। मजेल्मातृकं रिक्थं भगिन्यश्च सनाभयः ।१९२ दो पिताओं से एक माता में उत्पन्न हुवे दो पुत्र यदि स्त्री धन के लिये लड़ें तो उन मे जो जिस के पिता का धन हो वह उस को प्रहण करे, अन्य न लेवे ॥१९१।। माता के मरने पर सब सहोदर भाई और सहोदरा भगिनी मिल कर मात्वन को बराबर वांट लेवें ॥१९॥ यास्तासां स्युदुहितरस्तासामपि यथार्हतः । मातामह्या धनात्किचित्तदेयं प्रीतिपूर्वकम् ।१९३। अध्यग्न्यध्यावाहनिक दत्तन्ध प्रीतिकर्मणि । भ्रातृमातृपितृप्राप्तं षड्विधं स्त्रीधनं स्मृतम् ।१६४॥ इन लड़कियों की जा ( अविवाहिता) कन्या हो उन को भी