पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३०

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नवमाऽध्याय. १२७ . यथायोग्य मातामहीं के धन से प्रीतिपूर्वक थोड़ा सा धन देना चाहिये ॥१९३।। १ विवाह काल में अग्नि के सन्निधि में पित्र आदि का दिया हुया धन, २ बुलाकर दिया हुवा, ३ प्रीति कर्म मे तथा समयान्तरमे पति का दिया हुवा. ४ पिता, ५ भ्राता, ६ माता सं पाया हुवा । यह ६ प्रकार का स्त्री धन कहा है ।।१९।। अन्याय च यद्दवं पत्यापीतेन चैश्यत् । पत्यौजीवति वृत्तायाः पनायास्तद्धनं भवेत् ॥१६॥ ब्रामदैवार्षगान्धर्ष पाजापत्येषु यत्सु। अपूजायामतीतायां भर्तुरेख वदिष्यते ॥१६॥ (विवाहके ऊपर पतिक कुलमें स्त्री जी धनपावे वह) अन्वाधेय धन और जो पति ने प्रीतिकर्म में दिया हो, पति के जीते हुवे मरी स्त्री का वह सम्पूर्ण धन सन्तान का हो ॥१९५॥ ब्राह्म हैव आप गांव और प्राजापत्य, इन पांच प्रकार के विवाहो में जो (स्त्रियो काच प्रकार का धन है) वह अपुत्रा स्त्री के मरने पर पति का ही कहा है ॥१९॥ यत्त्वस्याः स्यानं दो विवाहेबासुरादिषु । अग्रजायामतीतायां मातापित्रोस्तविध्यते ॥१६॥ स्त्रियां तु यद्भवेद्विचं पित्रा दर्ष कथञ्चन । बामणीतद्धरेत्कन्या तदपत्यस्य वा भवेत् ॥१९॥ परन्तु आसुरादि (३) विवाहोमे जो स्त्री को दिया धन है उस स्त्री के अपुत्रा मरने पर वह (धन) माता पिता का है ॥१९७॥ स्त्रीके पास जो कुछ धन किसी प्रकार पिताका दियाहो वह उसकी प्राह्मणी कन्या महण करे अथवा उसकी संतानका होजावे ।।१९८॥ ।