पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नवमाऽध्याय ५२९ यदि कदाचित् नपुंसक को छोड़कर (अतद्गुण संविज्ञान बहुव्रीहि समास जानो) पतिवादि का विवाह करने की इच्छा हो वो उन सन्तान वालों के सन्तान धन के भागी है ।२०शा पिता के मरने पर ज्येष्ठ पुत्र जो कुछ धन पावे, यदि छोटा भाई विद्वान् हो तो उस में भी उसका भाग है ।।२०।। अविद्यानां तु सबैपामीहातश्चेदनं भवेत् । समस्तत्र विभागः स्यादपिव्यइति धारणा ॥२०॥ विद्याधनं तु यद्यस्य तत्तस्यैव धनं भवेत् । मैत्रपमौद्वाहिकं चैव माघुपर्किकमेव च ॥२०६॥ सब विद्वान भाइयो का यदि कृषि वाणिज्यादिसे कमाया हुवा 'धन हो तो उस में पिता के कमाये धन को छोड़ कर समविभाग करें (अर्थान् ज्येष्ठ को कुछ निकाल कर न देवे) यह निश्चय है २०५ विद्या मैत्री विवाह उनसे सम्पादित और मधुपकदानके काल में प्राप्त धन जिस को मिला हो उसी का हो ॥२०६|| प्रातणां यस्तु नेहेत धनं शक्तः स्वकर्मणा । सनिर्माज्या स्वकादंशाकिञ्चिदखोपजीवनम् ।२०७ अनुपध्नम्पितद्रव्यं श्रमेण यदुपार्जितम् । स्वयमीहिनल्ब्धं तन्नाकामोदातुमर्हति ॥२०८|| जो अपने पुरुषार्थ से धन कमा सकता है और भाइयों के साधारण धनों को नहीं चाहता, उस को अपने भाग में से कुछ निर्वाह योग्य धन देकर अलग करें (जिस से सब भाइयों के साझले धन में उस भाग न चाहने वाले के पुत्रादि झगड़ा न करे) २०४ा पिता के धन को न गमाता हुवा अपने श्रम से जो धन ६७