पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३३

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५३० मनुस्मृति भाषानुवाद उपार्जितकरें वह धन न चाहे तो भाइयों को न दे |Roll पैनकं त पिता द्रव्यमनवाप्तं यदाप्नुयात् । न तत्पुत्रैर्भजेत्सार्धमकामः स्वयमर्जितम् ॥२०६॥ विभक्ताः सह जीवन्तो विभजेरन् पुनर्यदि। समस्तत्र विभागः स्याज्ज्पष्टयं तनयो ॥२१॥ पिता अपने न पाये हुवे पैत्रिक द्रव्यको यदि फिर बड़े परिश्रम से पाव नो विना इच्छा के उम अपने कमाये धन को पुत्रो को न बांट ॥२२॥ पहिले अलग हुने हो और पश्चात् एकत्र हो व्यपार श्रादि करन रहे और फिर यदि विभाग करें तो उसमे सम विभगा हो उसमे बडे का उद्वार नहीं है ।।२१०॥ येषां ज्येष्ठः कनिष्ठो वा हीयेतांशप्रदानतः । नियेतात्यतरोवापि तस्य भागो न लुप्यते ॥२१॥ सौदर्याविभजेरस्त ममेत्य सहिताः समम् । भ्रातरा ये च ममृष्टा भगिन्पश्च सनाभयः।।२१२॥ जिन भाइयों के बीच में कोई छोटा वा घडा भाई विभागकाल में (मन्यामादि कारण से ) अपने अन्श से छूट जावे अथवा मर जाने से उनका भाग लुम न होगा ।।२११॥ किन्तु सहोदर भाई भगिनी और जो मिले हुवे भाई हैं वे भी सब मल कर उस में ममान विभाग करलें ॥२१॥ यो ज्येष्ठोविनिकुर्वीत लोभाद्भातन्ययीयसः । सा ज्येष्ठस्यादमागश्चनियन्तव्यश्च राजभिगा२१३॥ सर्वएव विकर्मस्था नाहन्ति भ्रातरोधनम् ।