पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३४

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नवमाध्याय नं चादवाकनिष्ठ भ्योज्येष्ठः कुर्वीतयौतकम् ॥२१४।। जो ज्येष्ठ भ्राता लोभ से कनिष्ठ भाइयों की बचना (उगई) करे वह ज्येष्ठ भ्राता अपने (ज्येठ ) भागसे रहित और राजो के दण्ड योग्य होवे ।।२१३शा विरुद्ध कर्म करने वाले सब भाई धन का भाग पाने योग्य नहीं और ज्येउ कनिष्ठो को न देकर कारचा न करे।२१४॥ श्रावृणामविभक्तानां यद्युत्थानं भवेत्सह । न पुत्रमागं विपमं पिता दयात्कथञ्चन ॥२१॥ ऊर्ध्व विभागाज्जातस्तु पित्र्यमेव हरेखनम् । संसृष्टास्तेन वा ये स्युर्विभजेत स तैः प्रह (१२१६॥ भाइयों के साथ रहने वाले सामले भाई यदि (धनके उपार्जन को) साथ साथ ही उस्थान को तो विभागकाल में पिता पुत्री का विषम विभाग कभी न करे ।।२१५॥ (यदि जीसे ही पिता ने पुत्री की इच्छा से विभाग कर दिया हो) उस विभाग के पश्चात् पुत्र अन्न हुया तो वह पुर पिता ही का भाग लेने अथवा जो फिर से पिता के साथ रहते हो उनके साथ विभाग करे ।।२१६।। अनपत्यस्य पुत्रस्य माता दायमवाप्नुयात् । मातापि च वृत्तायां पितुर्माता हरेद्वनम् ॥२१७।। ऋणधने च सर्गस्मिन्प्रविमत यथाविधि । पश्चादृश्येत यत्किञ्चितत्सब समतां नये ॥२१॥ सन्तान रहित पुत्र का दाप माता ग्रहण करे और माता के भी मान र पिता की माता ग्रहण करे ।।१७। ऋश और धन