पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३५

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मनुस्मृति,भाषानुवाद सब मे यथा शास्त्र विभाग होजाने पर पीछे से जो कुछ पता लगे तो उस सब को भी घरावर वाटले (अर्थात् पता लगाने का वा ज्येष्ठ का उद्धार देना योग्य नहीं है ) ॥२१॥ वस्त्रं पत्रमलबारं कृतानमुदकं स्त्रिया । योगक्षेम प्रचारं च न विमाज्यं प्रचक्षते ॥२१॥ अयमुक्तो विभागो वः पुत्राणांच क्रियाविधिः । क्रमशः चेत्रजादीनां द्यूतधर्म निबोधत ॥२२०॥ वस्त्र, वाहन, भामरण और पकाया हुवा बन्न पानी (कूपादि) तथा स्त्री और निर्वाह की अत्यन्तोपयोगी वस्तु और प्रचार (मार्ग) ये विभाग योग्य नहीं हैं ( अर्थात् जो जिसके काम में जिस प्रकार आ रहा है वही उसे वैसे ही रक्खे) ॥२१९॥ यह क्षेत्रजादि पुत्रों का क्रम से विभाग करने का प्रकार और क्रिया- विधान तुम्हारे प्रति कहा । अब आगे द्यूतधर्म को सुनो २२०॥ धृतं समाइयं चैव राजा राष्ट्रानिवारयेत् । राज्यान्तकरणावेशी द्वौ दोपौ पृथिवीषिताम् ॥२२॥ प्रकाशमेतचास्कर यह वनसमात्यो। योनित्यं प्रतीपाते नृपतिर्यत्नवान्मवेत् ॥२२२॥ द्यूत और समाइय (देखो २२३) का राजा राज्य मे न होने देवे क्योकि ये दोनों दोष राजानो के राज्य का नाश करने वाले हैं १३२शा ये यात और समालय प्रकट चौर्य हैं । इनके दूर करने राजा नित्य यल वाला होवे ।।२२२॥ अप्राणिभियक्रियते तल्लोके चुतमुच्यते । प्राणिमिः क्रियतेयस्तु स विज्ञेयः समायः १.२२३॥