पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३६

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नवमाऽध्याय तं समायं चैव यः कुर्यात्कारयेत वा । तान्सर्वान्यातयेद्राजा शूद्रांश्च द्विजलिजिनः ।।२२४॥ (कौड़ी फांसा इत्यादि) वेजान वस्तुओं से जो हार जीत होती है उसको "जुषा" कहते हैं और मिढा मुर्गा इत्यादि) प्राणियो से जोहार जीत होती है उसको "समाहर' जानना चाहिये ।।२२।। चूत और समादय को जो करेवा करावे उन सबको राजा मरवा देवे (वा बोट की दण्ड दे) और यज्ञोपवीतादि द्विजचि धारण करने वाले शूद्रों को भी यही दण्ड देवे ॥२२४।। "कितवान्कुशीलवान्न रान्पापण्डस्थांश्च मानवान् । विकर्मस्थान शौण्डिकांश्च चित्र निर्वासयेत्पुरात् ।२२।। एते राष्ट्र वर्तमाना राज्ञः प्रच्छन्नतस्कराः । विकर्मक्रिययानित्यं वाधन्ते भद्रिकाः प्रजाः ॥२२६॥ जुवारी, धूर्त करता करने वाले. पापण्डी, विरुद्ध कर्म करने घाले तथा शराबी मनुष्यों को राजा शीघ्र नगर से निकाल देवे २२५॥ क्योंकि राजा के राज्य में ये लिपे चार रहते हुवे कुकर्म से भली प्रजात्रो को पीड़ा देते हैं ॥२२॥ धूतमेतत्पुराकल्पे दृष्टं त्रैरकरं महन् । तस्माद्द्यूतं न सेवेत हास्यार्थमपि बुद्धिमान् ॥२२७॥ अच्छम' वा प्रकाशं वा निवेत यो नरः । वस्य दण्डविकल्पः स्याग्रथेष्टं नृपतेस्तथा ॥२२८|| यह युत पहिले कल्प में बड़ा और बैर बढ़ाने वाला देखा गया है, इस कारण बुद्धिमान् हास्यार्थ भी ध्रुव न खेले ।।२२७ जो