पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३७

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५३४ द मनुस्मृति मापानुवाद मनुष्य इस जुवे को गुप्त वा प्रकट खेले उसके दण्ड का विकल्प जैसी राजा की इच्छा हो वैसा करे ।।२२८।। क्षत्रविदशद्रयोनिस्तु दण्डं दातुमशक्नुवन् । आनण्यं कर्मणा गच्छेद्विषो दद्याच्छौः शनैः ॥२२६॥ स्त्रीवालोन्मत्तवृद्धानों दरिद्राणां च रोगिणाम् । शिफाविदलरज्ज्वायैर्विदध्यान पतिर्दभम् ॥२३०॥ क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र निर्धन होने के कारण दण्ड देने को अस- मर्य होवे तो नोकरी करके दण्ड का ऋण उतार देखें और ब्राह्मण धीरे धीरे देदे (अर्थात् ब्राह्मण से नौकरी न करावे) ।।२२।। स्त्री, वाल, उन्मत्त, वृद्ध, दरिद्र और रोगी का कमची, वेत रस्सी आदि से राजा दमन करे ।।२३०॥ येनियुक्तास्तुकार्येपुहन्युः कार्याणि कार्यिणाम् । धनोष्मणा पच्यमानास्तानि स्वान्कारयेन्नृपः ॥२३१॥ कूटशासनकर्तुश्च प्रकृतीनां च दूपकान् । स्त्रीवालवाझणध्नांश्च हन्पाद् द्विट्सेविनस्तथाः ।२३२॥ जो पुरुष कार्यों (मुकदमो) मे नियुक्त हो धन की गर्मी से पकते हुवे कार्य वालों के कामों को विगाड़ें, उन का सर्वस्व राजा हरण करवाले ॥२३१|| राजा की मोहर करके या अन्य किसी छल से राज कार्य करने वालो और अमात्यों के भेद करने वालो तथा स्त्री. बालक, ब्राह्मण को मारने वालों और श से मिले रहने वालो का राजा हनन करे ।।२३२|| तीरितं चानुशिष्टं च यत्र क्वचन यद्भवेत् ।