पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५३९

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मनुस्मृति भाषानुवाद ब्राह्मण के मारने वाला. मद्य पीने वाला, चोर और गुरुपल्ली से व्यभिचार करने वाला इन सब प्रत्येक को महापातकी मनुष्य जानना चाहिये ।।२३५।। प्रायश्चित न करते हुवं इन चारो को (राजा) धर्मानुसार धनयुक्त शरीर सम्बन्धी दण्ड करे।।२३६|| गुरुतन्ये मगः कार्यः सुरापाने सुराभजः । स्तेयेश्वपदकं कार्य ब्राहण्यशिराः पुमान् ॥२३७॥ असमाज्या झसंयाज्या असंपाठयापत्रिवाहिन । चरेयुः पृथिवी दीनाः सर्वधर्मवहिष्कृताः ॥२३८॥ गुरुपत्नी के व्यभिचार में पुरुप के ललाट में तप्त लाह से भगाकार चिन्ह करना चाहिये और सुरा के पीने में सुरापात्र के आकार का चिन्ह तथा चोरी करने में कुत्ते के पैर के आकार का चिन्ह करना चाहिये और ब्राह्मण के मारने में शिर काटना चाहिये २३णा थे ( महापातकी) पति में भोजन कराने और यज्ञ कराने तथा पढाने और विवाह सम्बन्ध के भी अयोग्य सम्पूर्ण धों से बहिष्कृत हुवे दीन (गरीव) पृथिवी पर पर्यटन करें ।२३८॥ ज्ञातिसंवन्धिमिस्स्वेते त्यक्तव्याः कृतलक्षणाः। निर्दयानि मस्कारास्तन्मनेारनुशासनम् ॥२३६॥ प्रायश्चित्तं तु वाणाः सर्ववर्णा यथोदितम् । नाङ्या राज्ञा ललाटेस्युर्दाप्यास्तूतमसाहसम् ॥२४॥ थे चिन्ह वाले जाति बिरादरी से त्यागने योग्य हैं, न इनपर दथा करनी चाहिये और नये नमस्कार करने योग्य हैं. इस प्रकार (मुम) मनु की आशा है ।२३५॥ परन्तु शास्त्रविहित प्रायश्चित किये हुवे ये सब वर्ण राजा को ललाट में चिन्ह करने योग्य नहीं