पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५४१

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। मनुस्मृति मापानुवाद दण्ड का स्वामी रुण है क्योकि गजाओ का भी दण्ड का धो (प्रमु) वरुण है । सम्पूर्ण वेद का जानने वाला ब्राह्मण मव जगत का रखामी है (इस से दोनों दण्ड धन लेने के योग्य है). ॥२४५|| जिस देश मे राजा इन महा पातकियों के धन की नाही ग्रहण करता उस देश मे मनुष्य काल से दोषयु वाजे हो है।॥२४॥ निप्पचने च सस्यानि यानानि विशां पृया । बालाच न प्रमीयन्ते विकतं न च जायते ॥२४७ बामणान्याधमानं तु कामादवरवर्णजम् । हुन्याचित्रणोपायैरुद्ध जनकरैन पः ॥२४॥ और प्रजाओं के धान्यादि जैसे बोए गए वैसे ही अलग अलग उत्पन्न होते हैं और वालक नहीं मरते और कोई विकार नहीं होता २४५॥ जान बूझकर ब्राह्मणों को पीड़ा देने वाले शूद्र को भयानक कई प्रकार के मार पीट के उपायों से राजा दमन करे।२४८॥ यावानध्वध्यस्य वधे तागामध्यस्य मोक्षणे । अधर्मानपते हो धर्मस्तु विनियच्छतः ॥२४६।। उदितोऽयं विस्तरशो मिथो विवदमानयोः । अहादशसु मार्गेषु व्यवहारस्य निर्णयः ॥२५०॥ अवघ्यो के वध मे जैसा अधर्म शास्त्र से देखा गया है वैसा ही वध्य के छोड़ने में भी राजा को अधर्म होता है और निग्रह करने से धर्म होता है ।।२४९|| यह अठारह प्रकार के मागों में परस्पर विवादियो (मुदई मुद्दाइलह) के मुकहमो का निर्णय विस्तार के साथ कहा ॥२५॥