पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५४२

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I एवं धाणि कार्याणि सम्यक्कूर्गन्महीपतिः । देशानलब्धांलिप्सेत लब्धाच परिपालयेत् ॥२५११॥ सम्पनिविष्टदशस्तु कृनदुर्गध शाम्बतः । फएटकारले नित्यमातिष्ठेयत्नमुत्तमम् ॥२५२|| म पारधी कायों का प्रचं प्रकार करता हुआ गजा अलव्य देशों को पाने की इन्वायर पार लब्धान परिपालन करे || अन् प्रकार बने देश में (मनमा मात्र में कहा गति के असुमार) किल बनाकर चोर अ श्रादि करटकों के उद्धार में सदा उत्तम बल करें। रक्षणादायवृत्तानो कण्टकानां च शोधनात् । नरेन्द्रास्त्रिादिक यान्ति प्रजापालनतत्परा. ॥२५३॥ अशासंतस्करन्यन्तु बलि गृहनि पार्थिवः । तम्य अचम्पत राष्ट्र स्वर्गाह परिहीयते ॥२५४॥ अच्छे प्रावरण बालों की रक्षा और चारादि के शोधन में प्रजागलन में नए राजा वर्ग को प्रात होते हैं ॥२५॥ जा रामा चौरादिको दण्ड न कर पाना बलि (मामारी) लेना है, उनकी प्रजा उसमे बिगड़ती है और वह स्वर्ग से भी हीन हो जाता है ॥२४॥ निर्भयं तु भवेदस्य राष्ट्र बाहुबलाश्रितम् । तस्य तद्वते नित्यं सिच्यमानहन द्रुमः ॥२५५।। द्विविधांस्तस्करान्विद्यास्पद्रव्याऽपहारकान् । प्रकाशाचा प्रकाणांब चारचक्षुर्महापति ॥२५६॥ 1