मनुस्मृति भाषानुवाह जिस राजा के बाहुबल के आभय से प्रजा (चौगदि से) निर्भय रहती है उस राजा का राज्य नित्य सिचते हुये वृक्षक समान बढ़ता है ।।२५५॥ चार (गुम दूत ) रूपी चक्षु वाला राजा दे। प्रकार के पाइन्य के हरण करने वाले चारों को जाने । एक प्रकट दूसरे अप्रकट २५६ प्रकाशवञ्चकास्तेषां नानापरयोपजीविनः । प्रच्छन्नवञ्चकास्त्वेते थे स्तेनाऽटविकादयः ॥२५७|| उरकायकाश्चोपाधिका बञ्चकाः कितवालया। मङ्गलादेशयुत्ताश्च भद्राश्चेषणिक सह ॥२५८|| उन (चौरादि) मे नाना प्रकार की दुकानदारी से जीवन करने वाले प्रकाशवञ्चक (खुले ठग) हैं और चोर तथा जङ्गल आदिक लुटेरे छुपे बन्चक हैं ।।२५७उत्कोचक-रिश्वतखार । उपधिक- भय दिखाकर धन लेने वाले । कञ्चक- ठग । कितव-जुवारी आदि । मङ्गलादेशवृत्त"तुम्हारी भलाई होने वाली है' इत्यादि प्रकार प्रलोभन देने वाले । भद्र भलमनसाइत से ठगई करने करने वाले । ईक्षणिक-हाथ देखने वाले आदि ।।२५८11 असम्यकारिणश्चैव महामात्राश्चिकित्सका। शिल्पोपपारयुक्ताश्च निपुणा पण्ययोपितः ॥ २५६|| एवमादीन्विजानीयात्प्रकाशांल्लोककण्टकान । निगूढचारिणवान्याननार्यानार्यलिनिन ॥२६॥ बुरा करने वाले उच्च कर्मचारी, वैद्य, शिल्पादि जीवी और चालाक वेश्याओ ॥ ५९॥ इत्यादि प्रकार के प्रत्यक्ष ठगों और