पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५४५

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मनुस्मृति भाषानुवाद एवं विधान्नृपो देशान्गुल्मः स्थावरजङ्गमैः । तस्करप्रतिषेधार्थ चारैश्चाप्यनुवारयेत् ।।२६६॥ . जीर्ण वाटिका, वन, शिल्पगृह तथा बाग बगीचे ॥२६५।। इस प्रकार के देशों को राजा एक सान में स्थित सिपाहियों की चौकी और घूमने वाले, चौकी पहरों और गुप्त चरों से चोरों के निवारणार्थ विचरित करावे (क्यों कि प्रायः तस्कर इन स्थानों में पड़ते है)||२६॥ तत्सहायरनगतै नाफर्मप्रवेदिभिः। विद्यादुत्सादयेच्चैध निपुणैः पूर्वतस्करैः ॥२६७) भक्ष्पभोज्योपदेशैश्च बामणानां च दर्शनः । चौर्यकर्मापदेशैश्च कुर्युस्तेषां समागमम् ॥२६८ उन की सहायता करने वाले और उन के पीछे चलने वाले और सेघ आदि अनेक कमों को जानने वाले पहिले चार और उस कर्म में निपुण गुप्त चरों द्वारा (राजा) चारो को जाने और निमूल करे ।।२८७॥ चे (जासूस ) उन चारों को खाने पीने के चहानों और ब्रामणो के दर्शनों के मिप और शूरवीरता के काम के बहाने से राजद्वार मे लिया लाकर पकड़वा दें ।।२६८। ये तत्र नोपसयुमूलप्रणिहिताच ये । तान्प्रसाद्य नृपा हन्यात् समित्रज्ञातिवान्धवान् ।२६६) न होडेन विना चौरं घातयेद्वामिका नृपः। सहाढं सोपकरणं छातयेदऽविचारयन् ॥२७०॥ जो वहां पर पकड़े जाने की शङ्का से न जावें और उन गुप्त