पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५४६

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नवमाऽध्याय राजदूती के साथ चालाकी, सावधानी से कर पापे को बचाने हो, उनका राजा बजाकारसे पाकर भित्र जाति माइयो सहित बध करे।।२६९॥ धार्मिक राजा विना माल और सेघ आदि प्रमाण के चोर का वध न करे और माल तथा सेव आदि के प्रमाण सहित होतो विना विचारे मरवा देवे ॥२०॥ ग्रामेष्वपि च ये फेषिचौराणां भक्तदायकाः । भाण्डावकाशदाश्चैव सर्वास्तानवि धातयेत् ।।२७१॥ राष्ट्रपुरक्षाधिकृतां सामन्तांश्चैव चोदितान् । थभ्याधातेषु मध्यस्थांशिष्याचौरानिवद्रुतम् ॥२७२। प्रमों में भी जो भोजनादि (मद ) देने वाजे और पता वा जगह हैन वाले हो, उन मव को भी (राजा) गरवा देवे ॥२७॥ राज्य मे रक्षा का नियुक (पुलिम ) और सीमा पर रहने चालो में जो यूर चौरादि की घात के उपदेश मे मध्यस्थ हो, उन को भी चोरवन् शीव दण्ड देवे ।।२७२।। यथापि धर्मसमयात्मच्युता धर्मजीवनः। दण्डेनैव तमप्योपेत् स्वकार्माद्धिविच्युतम् ।।२७३।। प्रामयाते हिनामङ्ग पथिोपामिमर्शने । शक्तितो नाभिधावन्तनिवास्याः सपरिच्छदाः ।२७४) जो कचहरी करने वाला ( हाकिम ) धर्म की मर्यादा से घट हो, इस स्वधर्म से पतित को भी दण्ड से ही क्लेश दे ।।२७३|| चार आदि से गांव के लुटने से और मार्ग के चोरों को खोज में स्त्री के साथ बलाकार में जा आस पासके रहने वाले यथाशक्ति राजा को महायतार्थ बैड़ धूर नहीं करते उन को असवान के