पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५४७

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मनुस्मृति भाषानुवाद सहित (पाम से निकाल देवे |Rell राज्ञः कापोपहतच प्रतिकुलेषु च स्थितान् । घातयेदिविधर्दण्डैररीणां चोपचापकान् ॥२७५|| सन्धि छित्वातु येचौर्य रात्रौ कुर्वन्ति तस्कराः । तेपांछित्त्वानृपोहस्तौ तीक्ष्णोशूले निवेशयेत् ॥२७६॥ राजा के खजाने में चोरी करने वालो तथा आना भङ्ग करने बाल और शत्रु को भेद देने वालो को नाना प्रकार के दण्ड देकर मारे ||२५|| जो चार रात को मेंघ देकर चारी करें. राजा उन के हाथ काट कर वेज शूली पर चढ़ावे ।।२७६।। अंगुलीग्रन्थिभेदस्य छेदयेत्प्रथमे रहे। द्वितीये इस्तचरणौ ततीचे वधमईति ॥२७७॥ अग्निदान्मक्तदाश्चैत्र तथाशस्त्रावकाशदान् । सनिघातश्च मोषस्य हन्याचौरमिषेश्वरः ।२७८/ गांठ काटने वाले की पहिली धार चोरी करने में अंगुलियां दूसरी बार करने में हाथ पैर कटवा दे और तीसरी बार मे वध के योग्य है ।।२७७। उन चारों को अग्नि अन्न, वस्त्र, स्थान देने वाले और चोरी का धन पास रखने वालो को भी राजा चारवत् दण्ड देवे ॥२८॥ तडागभेदक हन्यादप्सु शुद्धवधेन वा । यद्वापि प्रतिसंस्कुर्याद् दाप्यस्तूचमसाहसम् ।२७६। काष्ठागारायुधागार देवतागारमेदकान् । हस्त्यश्वरथहरुश्च हन्पादेवाऽविचारयन् ।२८० स