पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५४९

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मनुस्मृति मापानुवाद संक्रमध्वजयष्टीनां प्रतिमानां च मेदकः । प्रतिकर्याच्च तत्सब पञ्चदद्याच्छतानि च ।२०५॥ अपितानां द्रव्याणां दपणे भेदने तथा । मणीनामपवेधे च दण्डः प्रथमसाहसः १२८६ लकड़ीके छोटे पुल वा ध्वजाकी लकड़ी और किमी प्रतिमा को तोड़ने वाला उन सब का फिर बनवा देवे और पांच सौ पण दण्ड देवे IR८५|| अच्छी वस्तु को दूषित (खराब) करने तोड़ने और मणि यो के बुरा बींधने मे "प्रथम साहस" दण्ड होना चाहिये ।।२८६॥ समैर्हि वियमं यस्तु चरेद्वै मूल्यतोऽपि वा। समाप्नुयाइमें पूर्व नरामध्यममेत्र वा ॥२८७॥ वन्यनानि च सर्वाणि राजा मागें निवेशयेत् । दुःखिता यत्र हरपेरविकृताः पारकारिणः ॥२८॥ वरावर की वस्तुओ वा मूल्य से जो घटिया बढ़िया वस्तु देने का व्यवहार करे उस को पूर्व या "मध्यम साइस" दण्ड मिले ।।२८। राजा मार्ग मे बन्धन गृहो का बनवावे. जहां दुःखित और विकृत पाप करने वाले (सब को ) दीखें ।।२८८11 प्राकारस्य च मेतार परिखाणां च पूरकम् । द्वाराणा चव भक्तारं क्षिप्रमेन प्रवासयेत् ॥२८॥ प्राकार (सफील) के तोड़ने वाले और उसीकी खाई को मरने वाले और उसी द्वारोके तोड़ने वाले को शीघ्र ही दिशसे) निकाल दे॥ (२८९ के पूर्वार्ध से आगे (बीच मे) यह श्लोक एक पुस्तक में देखा जाता है.-