पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५५

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मनुस्मृति भापानुवार अग्निवायुविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म मनातनम् । दुदाह यज्ञ मिद्धयर्थमृग्यशुमामलक्षणम् ॥२३॥ उस प्राणियों के प्रभु ने कर्म है स्वभाव जिन का स देवां (अग्नि वायु आदित्यादि) माव्यों के मूल्म समुदाय और सनातन (ज्योतिष्टोमादि) यक्ष का उत्पन्न किया ॥ (उसने) यन्त्र के अर्थ सनातन वेद, जिम के ३ भेद = ऋग्यजु नाम हैं इन को अग्नि वायु सूर्य से (अग्नि मे शूग्बंद. वायु स यजुर्वेद और सूर्य से सामवेद) प्रकट किया ॥२३॥ कालं कालविभक्तीच नक्षत्राणि ग्रहांस्तथा । सरितः सागरान् शेलान् समानि विपमाणि च ॥ २४ ॥ समय, (धर्प, मास, पक्ष, तिथि, प्रहर घटिका. पल कला- काष्टादि) काल-विभाग तथा नक्षत्र, ग्रह नदी समुा, पर्वत और ऊँची नीची (भूमि) उत्पन्न किये ॥२४॥ तपा पार्च रनि चैत्र कामं च क्रोवमेव च । सृष्टि समज चैवैमा स्रष्टुमिच्छन्निमाः प्रजाः ॥ २५ ॥ कर्मणां च विवेकार्थ धर्माधर्मों व्यवेचयत् । द्वन्द्व रयोजयच्चेमाः सुवदुःखानिमिः प्रजाः ॥ २६ ॥ प्रजा के उत्पन्न करने की इच्छा करते हुवे ने तप, वाणी रति (जिस से चित्त को प्रसन्नता होता है) काम तथा क्रोधका उत्पन्न किया ||२५|| कमों के विवेक के लिये धर्म अधर्म को जताया (और धर्माऽधर्मानुसार) सुग्व दु खादि द्वन्द्वो से प्रजा का योजन किया IRI