पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५५२

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नवमाऽध्यार चारों (जामा) में उतार और काप की कामाई में मरने नया शत्रुके सामर्थ्य र गजा निन्य जानता रहे ॥९॥ पीडनानि च सवा मनानि च । आरमेत तना कार्य तचिन्त्यगुरुनापयन् ॥२६॥ आरमनवकर्माणि श्रान्तः श्रान्त पुनः पुनः । कर्माण्यारममार्थ हि पुत्र श्री.पेवने ॥३०॥ काम कोष से हुवे मन्मूख दुग्गी और मम्मनी और गौग्य लापों का सोचकर काम का प्रारम्भ करें।।२९ गयी वृद्धि होने के काम राजा दम लेल कर फिर २ करता ही है कि कामों के प्रारम्भ करने वाले पुनरको लम्मी प्रान हानी है ॥३॥ कतं बेतायुगं च द्वापर मजिरेव च । राज्ञोवृत्तानि सणि राजा हि युगष्टुच्यने।।३.१५ कलि प्रपो भवनि सजाग्रन्द्वापर युगम् । फर्मरम्धतरत्रे विवस्तु कनं युगम् ॥३०२!! मात्यगुग त्रेतायुग, द्वापरयुग मय गवाहों के मागिता क्योकि राजाभीयुग कहाता है । नबगमा निगमnt यह कलियुगहै और जब जागता हुबानी कम नहीं करना न पर है जब कमानुष्ठान में उन्धन होता है, उस समर बना है नीरजा यथाशास्त्र कमों का अनुष्ठान करता हुवा विचरना है उस मना सत्ययुग है ।।३०॥ इन्द्रस्यास्य वायाश्च यमस्य वरुणस्य च । चन्नस्याग्नेः पृथिव्याश्च नेलोच नाचगेन ।३.३।