पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५५४

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नवमाऽध्याय ५१ पापियो का शामन करे वरुण का यही व्रत है ।।३०८ परिपूर्ण यथा चन्द्रं दृष्ट्वा यहन्ति मानवाः । तथाप्रकृतया यस्मिन् स चान्द्रप्रतिकानयः ॥३०६॥ प्रतापयुक्तस्तेजस्वी नित्यं स्यात्पापकर्मसु । दुष्टसामन्तहिनश्च तदाग्नेयं व्रतं स्मृतम् ॥३१०|| जैसे पूर्ण चन्द्र को देखकर मनुष्य हर्ष को प्राप्त होता है वैसे ही अमात्यादि जिस राजा के देखने से प्रसन्न हो वह राजा चन्द्र व्रत करने वाला है ॥३०९|| पार करने वालो पर सा अग्निवत् जाज्वल्यमान रहे, तथा दुष्टवीरों की भी हिंसा के स्वभाव वाला हो। यह अग्नि का व्रत है ।।३१०॥ यथा सर्वाणि भूतानि घरा धारयते समम् । तथा सर्वाणि भूतानि विनतः पार्थिवं व्रतम्।।३११॥ एतैरुपायरन्यैश्च युक्तो नित्यमतन्द्रितः । स्तेनानराजा निगृह्णीयात्धराष्ट्र पर एव च ॥३१२। जैसे पृथिवी मयको बरावर धारण करती है वैसे राजा भी सब प्राणियोंका बरावर पालन पोपण करें। यह पृथिवीका काम है ॥३११। इन उपायों तथा अन्य आयो से सब आलस्य रहित राजा चोरो को जो अपने या दूसरे के राज्य मे (भाग गये) हो, वश मे करे ।।३१२॥ परामप्यापदं प्राप्तो ब्राह्मणान प्रकापयेत् । तेह्य में कुपिता हन्युः सद्य सबलवाहनम् ॥३१३।। "यै. कृत. सर्वभक्षोऽग्निरपेयश्च महोदधिः । क्षयी चाप्यायितः सोम. को न नश्येप्रकोप्य तान् ॥४१३"