पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५६०

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ओरम अथ दशमोऽध्यायः अघीयीरंस्त्रयोवर्णाः स्वकर्मस्था द्विजातयः । अत्र याब्राह्मणस्त्वेषां नेतराविति निधयः ॥१॥ सर्वेषां ब्रामणोविद्याद् वृत्युपायान्यथाविधि । प्रन यादितरे पश्च सयं चैव तथा भवेत् ॥२॥ अपने कर्मम स्थित विजाति बामणादि) तीन वर्ण विद) पो और प्राधण इन को पढ़ाने । इतर (क्षत्रिय वैश्य) न पढावे । यह निर्णय है ||१|| ब्राह्मण सब वर्षों का जीवनोपाय यथा शास्त्र आने और उनको बतावे और आप भी यथोक्त कर्म करेगा। शेष्यात्प्रकृतिश्रेष्ठयात्रियमस्य च धारणात् । संस्कारस्य विशेषाश्च वर्णानां बामणः प्रभुः ॥३॥ ब्राह्मणः पत्रियोगैश्यस्त्रया वर्णाद्विजातयः । चतुर्थएकजातिस्तु शूद्रोनास्ति तु पञ्चन: ॥४॥ विशेषतः म्बामाविक रेटता नियम के धारण करने तथा संस्मर की अधिकता से सब वणों का ब्राह्मण प्रमु है ।।।। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ये तीन वर्ण विनाति हैं, चौथा शूद्र एक जाति है पञ्चम वर्ण नही है । सर्ववर्णेषु तुल्या पत्नीष्वक्षतयोनिषु । आनुलोम्येन संभूता बात्या ज्ञेयास्त एव ते ॥५॥