पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- यथैव शूद्रो ब्रामण्यां वाह्य जन्तुं प्रसूयते । तथा बाह्यन्तरं वाह्यातुर्वण्य प्रसूयते ॥३०॥ घे (पूर्वोक्त) आयोगवादि भी परम्पर जाति की स्त्री में बहुत से उन से भी अधिक दुष्ट और निन्दित सन्तान उत्पन्न करते हैं ॥२९॥ जैसे शब्द ब्राह्मणी मे अधम जीव को उत्पन्न करता है वैसे ही चारों वर्षों में वे अधम उन से भी अधमो को उत्पन्न करते हैं ।॥३०॥ प्रतिकूल वर्तमानावाशायाह्यतरान्पुनः । होनाहीनान्प्रसूयन्ते वर्णान्पञ्चदशैर तु ॥३१ प्रसाधनोयचारजमदास दासजीवनम् । सरिन्ध्र वागुरावृत्ति 'भूते दस्युग्योगवे ॥३२॥ प्रतिकूल चलने वाले प्रथम चाण्डालादि तीन, चारो वणों की स्त्रियों में अपने से अधिक अधम सन्तान का उत्पन्न करते हैं तो एक से एक हीन पन्द्रह वर्ण उत्पन्न होते हैं (चार वर्षों की स्त्रियो मे तीन अधों के तीन र ऐसे बारह निकट सन्तान और उनके पिता तीन अधम ऐसे पन्द्रह उत्पन्न होते हैं) ||३१|| बालों में कंघी आदि करना और चरणादि का धोना और स्नानादि का करवाना, इस प्रकार के कामसे वा जाल फसे बांधकर जीने वाला "सैरिन्ध" नाम (आगे कहे हुवे) दस्यु से आयोगब उत्पन्न होता है॥३२॥ मैत्रेयकं तु देहो माधुकं मप्रसूयते । नन्प्रशंसत्यजस्र यो घण्टताडोयोदये ।।३३।। नियामा मार्ग मते दातानीकर्मजीविनम् ।