पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५६७

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५६४ मनुस्मृति भाषानुवाद कैवर्गमिति यं प्राहुरार्यावर्तनिवासिनः ॥३४॥ आयोगवी वैदेह से मधुरभापी "मैत्रेयक को उत्पन्न करती है जो कि प्रातःकाल घण्टा बजाकर राजा आदिकों की निरन्तर स्तुति करता है ॥३शा निपाद और आयोगवी से 'दास' इस दूसरे नाम बाजा नाव के चलाने से जीवन वाला मार्गव उत्पन्न होता है जिसका प्रार्थावत्त निवासी लोग "कर' कहते हैं ॥३४॥ मृतवस्त्रभृत्सु नारीपु गर्हितानाशनासु च । भवन्त्यायोगवीवेते जातिहीना: पृथक् त्रयः ॥३५॥ कारावरो निपादान चर्मकारः प्रमयते । वैदेहिकान्ध्रमेदौ बहिमप्रतिश्रयौ ॥३६॥ मृतक के वस्त्र को पहनने वाली और उच्छिष्ट अन्न को भोजन करने वाली प्रायोगवी मे अलग र जातिहीन (तीन पुरुषो के भेद से) ये तीन उत्पन्न होते हैं ॥३५॥ निषाद से तो कारावराख्य चर्मकार उत्पन्न होना और वैदेह से "अन्न' और 'मेद" माम के बाहर रहने वाले उत्पन्न होते हैं ॥३६॥ चण्डालापाण्डुसोपाकस्त्वक्सारव्यवहारखान् । आहिण्डिको निषादेन वैदेखामेव जायते ॥३७॥ चण्डालेन तु सोपाका मूलव्यसनवृत्तिमान् । पुक्कस्यां जायते पापः सदा सज्जनगर्हितः ॥३८॥ चाण्डाल से वैदेही मे ही "पाण्डु सोपाक नामक वांसके सूप पंखा आदि बनाने से जीने वाज्ञा उत्पन्न होता है। और निषाद से वैदेही मे ही "आहिण्डिक" उत्पन्न होता है ॥३७॥ चण्डाल से पुक्कसी मे पापात्मा सदा सज्जनो से निन्दित और जल्लाद वृत्ति