पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५७७

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मनुस्मृति भापानुवाद त्रयो धर्मा निवर्तन्ते ब्राह्मणात्वत्रियं प्रति । अध्यापनं याजनं च तृतीयश्च प्रतिग्रहः ।।७।। नैश्यं प्रति तथैनैते निवतरनिति स्थितिः। न तौ प्रति हि तान्धर्मान्मनुराह प्रजापतिः ॥७८|| ब्राह्मण के धर्मों से क्षत्रिय के तीन धर्म छुटे हैं १ पढ़ाना २ यत्र कराना, और ३ दान लेना (अर्थात् इन का क्षत्रिय न करें) ॥७७|| वैश्य के भी इसी प्रकार तीन धम छुटे । इस प्रकार मर्यादा है क्योकि क्षत्रिय धेश्यो की जीविकार्य उन धर्मों को (मुझ) मनु प्रजापति ने नहीं कहा है ॥८॥ शस्त्रास्त्रभुत्वं चत्रस्य वणिकाशुकृषिविंशः। आजीवनार्थ धर्मस्तु दानमध्ययनं याजः ।।७।। वेदाम्पासा बामएस त्रियस्य च रक्षणम् । वाताकमैव वैश्यस्य विशिष्टानि स्वकर्मसु ||८०|| क्षत्रियों का शस्त्र अस्त्र धारण करना और वैश्य का व्यापार गाय वैज आदि का रखना और खेती,ये दोनो कर्म दोनोके आजी- बनार्थ कहेहैं और दान दना पढ़ना, यज्ञ करना, (दानोका) १ धर्म कहाहै ॥७९॥ ब्राह्मण का वेदाभ्यास करना शत्रिय का रक्षा करना औरवैश्य का वाणिज्य करना अपनर कर्मो मे विशेप कम हैं 1८० अजीवस्तु यथोक्तन ब्रामणःस्वेन कर्मणा । जीवेत्वत्रियधर्म स ह्यस्य प्रत्यनन्तः ८१॥ उभाभ्यामप्यजीवंस्तु कथं स्यादितिचेद्भवेत् । कृपिगोरक्षामास्थाय जीवेश्यस्य जीविकाम्।।८२|| . .