पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५७९

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मनुस्मृति भाषानुवाद सर्वच तान्तवं रक्त शायदौमाविकानि च । अपिचेत्स्युरभक्तानि फलमूले तथौपधीः १८७|| अपशिस्त्रं विषं मांस सोम गन्धाश्च सर्वशः। क्षीरं चौद्रं दधि घृतं तैलं मधुगुडं कुशान् ।।८८|| सब रहके तथा सन के कपड़े और रेशमी ऊनी रंगे कपड़े वा दिन में भी हां और फल मूल तथा औषधियों को (न वेचे) 1145| जल, शस्त्र। वप, मांस, सोमवल्ली तथा सब प्रकार के गन्ध दूध, शहद, दही घी. तेल, मबु (एक पुस्तक मे मधुमन्ना पाठ है ) गुड़ और कुशा (इन को भी न बेचे) भारण्यांच पशून्सन्निप्टिणश्च वांसि छ ।' भय नीलिं च लाक्षा च साश्चैकशफांस्तथा||cell काममुत्पाद्य कण्या तु स्वयमेव कपीबलः । विक्रीणीत तिलान्द्रान्धर्मार्थमचिरस्थितान् ॥०॥ जङ्गली सव पशु तथा दांतो वाले (कुत्ते आदि) और पक्षियों तथा मद्य, नील, लाख और एक खुर वाले घोड़े आदि (इन को भी न बेचे ) || खेती गला आप ही खेती में विलो का उत्पन्न करके दूसरे अन्य से विना मिलाये हुवे तिलों का बहुत दिन न रख कर बर्मकार्य में लगाने निमित्त चाहे तो शूद्रों को विक्रय कर दे। 'शूद्वान् की जगह 'शुद्धान्' पाठ की छहों टीकाकारों ने व्याख्या की है 'शूद्रान्' की किसी ने नहीं । परन्तु ५ मूल पुस्तकों को छोड़ शेप २५ पुस्तकोंमें मूलका पाठ शूद्रान' ही है । ८९से' आगे एक पुस्तक में यह श्लोक अधिक है कि- .