पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५८

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प्रथमाऽध्याय पुलस्त्य ४ पुलह ५ केनु ६ प्रचेतस ७ वसिह ८ भृगु ९ और नारद १० को ॥३५॥। इन बड़े प्रकाश वाले दश प्रजापतियों ने अन्य बड़े कान्ति वाले सातमनु तथा देवतों और उनके स्थानों और ब्रह्मर्पियों को उत्पन्न किया ॥३॥ "यक्षरक्षः पिशाचांश्च गन्धर्वाप्सरसोऽसुरान् । नागान्सन्सुपर्णाश्चपितृणां च पृथग्गणान् ॥३७॥ विद्युतो शनिमेवाश्च रोहितेन्द्रधनू पि च । उन्कानितिकेतूंश्च ज्योतीप्पुबारचानि च ॥३८, । और यक्षरतः पिशाच गन्धर्व, अप्सरा, असुर,नाग,सर्प सुपर्ण और पितरों के गण (समूह) को ॥३७॥ और विद्यत (जो बिजली बादलोंमें चमकती है) अशनि (जा बिजली लोहा आदि पर गिरती है.) मेघवादल रोहित, (जो नाना वर्ण दण्डाकार आकाश मे दिखाई देते हैं ) (वर्षा ऋतु में ) इन्द्रधनुष (प्रसिद्ध) उल्का (जो रेखाकार आकाश से गिरती है ) निवात = अन्तरिन या पृथिवी से उत्पातशन केतु (बल वाले तारे) और नाना प्रकारके तारे ॥३॥ "किन्नरामानरान्मत्स्यान्विविधांश्च विहंगमान । पशन्मगान मनुष्यांश्च व्यालाश्चामयतादतः ॥३६॥ कमिकीटपतांश्च यूका मक्षिकमत्कुणम् । सर्वच देशमशक स्यावरं च पृथग्विधम् ॥४०॥" किनर धानर मत्स्य नानाप्रकार के पक्षी पशु, मृग मनुष्य न्याल और जिन के ऊपर नीचे दांत होते हैं ॥३५॥ कृमि, कीट, पतग जूका, खटमल और सम्पूर्ण (क्षुद्र जीव) मच्छर इत्यादि काटने वाले और स्थावर नाना प्रकार के (बृक्ष लवा वल्ली इत्यादि)४