पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५९

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५६ मनुस्मृति मापानुवाद "एवमेतैरिदं सर्व मनियोगान्महात्मभिः । यथाकर्म तपायोगात्सष्टं स्थावरजङ्गमम् ॥४१॥ 'पूर्वोक्त (मरीचि आदि) महात्माओं ने मेरी आत्रा तथा अपने तपके प्रभावसे यह सम्पूर्ण स्थावर जङ्गम कर्मानुसाररचा ॥४शा' (३३ से ४१ तक ९ श्लोक हमारी सम्मति मे अवश्य पीछे से मिलाये गये हैं । परमात्मा ने लोक, मनुष्य ब्राह्मणादि वर्ण वेद तथा अन्य सब जगत् बनाया यहा ४ जगत्कर्ता पाये जाते हैं १ परमात्मा २ विराट, ३ मनु ४ मरीच्यादि । इनमें ३६ वे श्लोक मे मरीच्यादि ऋषियोसे अन्य ७ मनुओका उत्पन्न होना कहाहै। सब लोग ब्रह्मा का पुत्र मनु को मानते हैं यहां विराट का पुत्र मनु कहा है । ३३३ श्लोकमे मनु अपनेका सब जगत का बनानेवाला बताते हैं जो इसी मनु के पूर्व श्लोको, वेदो और पुराणो तक के विरुद्ध है। तथा १ श्लोक ४० वें के आगे और भी किसी पुस्तको मे पाया जाता है, सवों में नहीं । इस से जाना जाता है कि वह तो बहुत ही थोडे समय से मिलाया गया है वह यह है- "यथाव में यथाकालं यथाप्रशं यथाश्रुतम् । यथायुगं यथादेशं यथावृत्ति (यथोत्पत्ति) यथाक्रमम् ॥" 'इस श्लोक का (यथोत्पत्तिक) पार उज्जैन नगरी के (आठ- वले) नाना साहिबके रामकृत टीकायुक्त पुस्तक में पाया जाता है। यह श्लोक सिताराके समीपवर्ती यानेश्वर स्थानके द्रविड़ शङ्करात्मज रामचन्द्र के मूलमात्र पुस्तक में भी पाग जाता है । तथा उज्जैन के (सारठी वावा) राममा शर्मा के मूल पुस्तक मे भी पाया जाता है शेष २७ प्रकारके पुराने लिखे पुस्तको मे यह श्लोक नही है। हमको भाश्चर्य यह है कि मेधातिथि आदि ६ टीकाकारों ने न जाने क्यो इस विरोध पर दृष्टि भी नहीं की)||४||