पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५८१

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५७८ मनुस्मृति मापानुवाद कतान्नं चाकृतान्नेन तिलाधान्येन तत्समा:|| माझण उक्त मांसादि से अतिरिक्त पश्यों की इच्छापूर्वक बेचने से सात दिन में वैश्य हो जाता है ।।९३॥ गुहादि का धृतादि से बदला कर लेवे, परन्तु लवण का इन से बदला न करे। सिद्ध किया अनविना सिद्ध किये अन्न ने बदल ले और तिल, धान्य के समान हैं ( धान्य से बदल लेवे ) ॥४॥ जीवेदेतेन राजन्यः सर्वेणाप्यनयं गतः । नत्वेव ज्यायमी वृत्तिभिमन्येत कर्हि चित् ॥१५॥ यो लामादधमो जात्या जीवेदुत्कष्ट कर्मभिः । तं राजा निर्धन कत्वा क्षिप्रमेव प्रवासयेत् ॥१६॥ आपत्ति को प्राप्त चत्रिय भी इस विधि से (वैश्यवन् ) जीवन करे, परन्तु कशापि ब्राह्मण की वृत्ति का अमिमान न करे ।।५।। जो निकृष्ट जाति से उत्पन्न हुवा (विना व्यवस्थापकों से विधि पूर्वक उच्चता पाये आप ही आप) लाभ से उत्कृष्ट जाति की वृति करे उस को राजा निर्धन करके देश से निकाल देवे ॥१६॥ वर स्वधर्मो विगुणो न पारक्यः स्वनुष्ठितः। परधर्मेण जीवन्हि सबः पतति जातित 181 वैश्या जीवन्स्वधर्मेण शूद्रवृत्त्यापि वर्जयेत् । अनाचरनकार्याणि निवत च शक्तिमान् ॥8cl अपना धर्म (काम) बोटा भी श्रेष्ठ है और दूसरे का अच्छा अनुष्ठान किया हुवा भी भेट नहीं क्यों कि पराये धर्म (पेशे) का आचरण करके जीविका करता हुवा उसी समय अपनो जाति से पतित हो जाता है ।।१७॥ वैश्य अपनी वृत्ति से जीवन न कर सस्ता हुषा शुद्र धृत्ति (द्विजातियों की सेवा) भी करले परन्तु