पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५९२

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साध्याग पुत्र श्री इत्यादि का क्लेश देकर जो परलोक के लिये दानादि करते हैं वह मान इस लोक तथा परलोक में उत्तरोत्तर दुःख देन पाला॥ (इम में प्रागे ५ पुस्तकों में या श्लोक अधिक प्रक्षिप्त है.. वृद्धी च मातापितरी साधो भार्या शिशुः सुतः । अध्यकार्यशनं कृत्वा भव्या मनुस्बतीत् ॥ बूढे मां बाप,मनी'त्री,बालक पुत्र. इनका भरण पोषण १०० अाज करकं भी करना चाहिये यह मनु ने कहा है) ॥१०॥ यश्चेत्यनिरुद्धः स्यादेकनाशन यज्वनः । ब्रामणस्य विशेषेण धार्मिक सति राजनि ॥१३॥ या नैश्य साबहुपशुहीनऋतुरसेामपः। कुटुम्बालस्य तद् द्रव्यमाद्यसिद्धये ॥१२॥ धार्मिक राजा के होते दुवे (क्षत्रियाद्रि यजमानो का और) विशेष करके मागण का यश किमी एक प्रगमे रुका हो तो ॥११|| जो वैश्य बहुत में गाय घेल वाला और यज्ञ न करने वाला तथा मामयज्ञ रहित दो उसके घरसे यहाको मिद्धि को यह नव्य ले पावे ॥१॥ भाहरेत्रीणिवा हुवा काम शद्रस्य वेश्मनः । न हि शूद्रस्य यज्ञेषु कश्चिदस्ति परिग्रहः ॥१३॥ योऽनाहिनाग्निः शागुरयज्वा च सहस्रगुः । तयोरपि कुटुम्बाम्यामाहरेदविचारयन् ॥१४॥ दोश्रङ्ग अथवा तीन अङ्ग की हीनता में चाहे शुद्ध के घर से भी अपने यज्ञ मियर्थ उन दो वा ३ वस्तुओं को ले आवे क्यो