पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५९३

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५९० मनुस्मृति भाषानुवाद कि शूध का यनो मे खर्च भी कुछ नहीं है ॥१शा जो अग्निहोत्री नहीं है और शत १०० गौ परिमित धन उमके पाम है तथा जिसने यह न किया हो और उसके पाम महन्न १००० गौ परिमित धन है उन दोनों के कुटुम्नों से भी विना विचारे ले आवे ||१४|| आदाननित्याचा दातुराहरंदप्रयच्छतः । तथा यथास्य प्रथते धर्मश्चैत्र प्रवर्धते ॥१४॥ तथैव सप्तमे मक्ते भक्तानि पहऽनश्नता । अश्वस्तनविधानेन हर्तब्ध हीनकर्मणः ॥१६॥ जिम के यहां (प्रतिमहाहि में) धन ग्रहण तो नित्य है और दान नहीं है उस से या के लिये न हुने हुवे से भी ले पाने । एसा करने से या फैलाता और धन बढ़ता है ॥१५॥ तीन दिन के भूग्वे को छ. बार भोजन न मिला हो ता ७ वी वार भोजनार्थ अगले दिन के लिये न लेकर होन कर्मी से बिना आज्ञा भी ललन मेदाप नहीं है ॥१६॥ खलाक्षेत्रादगारद्वा यतोवायुपलभ्यते । आख्यातव्यं तु तत्तस्मै पृच्छतेयदिपृच्छति ॥१७॥ ब्रामणस्त न इर्तव्यं चत्रियेण कदाचन । दस्युनिष्क्रिययोस्तु स्त्रमजीवन्हत मर्हति ॥१८॥ खलिहान से या खेत से वा मकान से वा जिस जगह से मिल जावे वहीं से (पूर्व श्लोकात अवस्था मे) ले लेना चाहिये। यदि धन स्वामी पूछे तो उसको कह दे (कि छ बार की भूख में लिया है) ॥१७॥ (इस दशा में भी) क्षत्रिय को ब्राह्मण की वस्तु कभी न लेनी चाहिये । क्षुधित क्षत्रिय का निष्क्रिय और दस्यु का धन