पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५९९

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मनुस्मृति भाषानुवाद और संस्काररहित ऐसे लेगि अग्निहोत्र के होता नियत न हो (इस से वृद्धा स्त्रियों को भी होता चनाना पाया जाता है) ॥३॥ नरके हि पतन्त्येते जुलनः स च यस्य तत् । तस्माद्व तानकुशला होता स्याहदपारगः ॥३७॥ पाबापत्यमदत्वाश्वमान्याधेयस्या दाक्षणाम् । अनाहिताग्निर्भवति बामणो विभवे सति ॥३८॥ (कन्यादि) होता बनाये जानेके अनधिकारी (होता वन कर) और जिसका वह अग्नि होत्र है वह (यजमान) भी नरक को प्राप्त होता है। इस कारण मौत कर्म मे प्रवीण और सम्पूर्ण वेद का जामने वाला होता होना चाहिये ॥३णा धन के होते हुवे मजापति देवता के निमित्त प्रश्न और अन्याय की दक्षिणान देवे तो ब्राह्मण अनाहिताग्नि हो जाता है (अर्थात् उस के आधान का फल प्राप्त नहीं होता) ॥३॥ पुण्यान्यन्यानि कुर्वीत श्रद्धानो जितेन्द्रियः । न स्वल्पदक्षिणैर्यज्ञैर्यजेतेह कथञ्चन ॥३६|| इन्द्रियाणि यशः स्वर्गमायुः कीर्सि प्रजाः पशून् । हन्त्यन्पदक्षिणोयज्ञस्तस्माबाल्पधनो यजेत् ॥४०॥ जितेन्द्रिय श्रद्धा वाला अन्य पुण्य कमों को करे परन्तु थोड़ी दक्षिणा के यज्ञ से कभी यजन न करे ।।३९॥ इन्द्रियो यश, स्वर्ग, आयुः कीति प्रजा और गौ आदि पशुनो को थोड़ी दक्षिणा घाला यज्ञ नष्ट करता है इस लिये थोड़े धन वाला यज्ञ न करे (वात्पर्य यह है कि थोड़े धन वाला यज्ञ करे तो ऋत्विज़ो को थोड़ी दक्षिण से दुःख होगा यजमान भी निधन होजायगा भूखा मरेगा और