पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६११

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६०८ मनुस्मृति भाषानुवाद अथवा ब्रह्महत्या के दूर करने को किसी एक वेद का जप करता हुवा. सौ योजन गमन करे, थोड़ा खाये और जितेन्द्रिय होकर रहे ||२|| अपनी सब जमा पूंजी अथवा जीवनार्य पुष्कल धन वा असबाब सहित घर वेद जानने वाले ब्राह्मण को दे देवे ||६|| हविष्य ग्या-नुसरेत्प्रतिस्रोतः सरस्वतीम् । जपेद्वा नियताहारस्त्रि वेदस्य संहिताम् I७७) कृतवपना निवसेद् अामान्ते गावजेपि वा। आश्रमे घूचमूले वा गोपामग्णाहिते रतः ॥७८|| अथवा हविष्य भोजन करता हुवा सरस्वती नदी के स्रोत की ओर गमन करे का नियमपूर्वक आहार करता हुवा वेद की साहिता को ३ वार पड़े 1991 वारह वर्ष तक सिर मुण्डाये गौ ब्राह्मण के हित में रत होकर प्राम के बाहर वा गौ के गोर में, शुद्ध देश में वा वृक्ष के नीचे वास करे ||७ बामणार्थे गवार्थे वा सद्यः प्राणान्परित्यजेत् । मुच्यते ब्रह्महत्याया गाता गावामणस्य च ॥७॥ त्रिवार प्रतिरोशा वा सर्वस्वमवजित्य वा । विग्रस्य तन्निमिचे वा प्राखालामे विमुच्यते ८० अथवा ब्राह्मण वा गौ के अर्थ यदि उसी समय प्राण दे देवे नो वह गौ ब्राह्मण की रक्षा करने वाला ब्रह्महत्या से छूट जाता है 1॥७९॥ यदि ब्राह्मण का सर्वस्व चोर ले जाते हो उस को तीन बार बचावे (अथवा ४ पुस्तक और राघवानन्द के टीकास्थ पाठ भेद से ज्यवरम् कम से कम तीन ब्राह्मणों के सर्वस्व की चारी