पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६१२

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प्रकादशाऽध्याय को बचाने वाला) अथवा ऐसा यत्न हो करके चाहे धन भी न छुड़ाने पास है। अथवा इस निमित्त प्राण त्याग ने पर ( अथवा कुल्लूक के अनुमत “प्राणलाभ" पाठ मे धन बचाने में ब्राह्मण का प्राण बचाने पर ब्रह्महत्या मे) छूटता है ॥४०॥ एवं दृढव्रता नित्यं ब्रह्मचारी समाहितः । समाप्ने द्वादशे वर्षे प्रमहतां व्यपाइति ॥१॥ शिष्ट्वा वा भूमिदेवाना वरदेवसमागमे । स्वमेनावमथस्नातो हयमेधे त्रिमुच्यते ||२|| इस प्रकार हद ब्रत करता हुवा, प्रदि दिन ब्रह्मचर्य से रहने वाला समाधान किये चित से बारह वर्ष व्यतीत होने पर वनाहत्या को दूर करता है ।।८९॥ अथवा अश्वमेघ यज्ञ मे ब्राह्मणों और राजा के समक्ष में (ब्रह्महत्या के पाप का ) निवेदन करके यन के अन्त में अवभृथ स्नान करता हुवा (ब्रह्महत्या के पाप से ) छूट जाता है । धर्मस्य वामणो मृनमग्न राजन्य उच्यते । तस्मासमागमे नेपामेनो विरूपाप शुध्यति ॥३॥ ब्राह्मणः सम्भवेनैव देवानामपि देवतम् । .प्रमाणं चैव लोकस्य ब्रह्मात्रैव हि कारणम् || बाबण धर्म का मूल है और राजा अन है। इस कारण उन के समागम में पार का निवेदन करके शुद्ध होता है ।।८३२ब्राह्मण सावित्री के जन्म से ही देवतों का देवता और लोकको प्रमाण है, इस में वेद ही कारण है ।। तेपां वेदविदा व युस्त्रयोऽप्येनः सुनिष्कातम् ।