पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६१९

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मनुस्मृति भाषानुवाद आक्रान्ता तथा गिरी हुई और कीचड़ लगा हुई गौ का सब उपायों से लड़ावे ॥११२|| उष्णे वर्षेति शीते वा मारुतेवातिवामृशम् । नकुर्वीतात्मनस्त्राणं गोरकृत्वातु शक्तितः ॥११॥ आत्मनोयदि वाधेषां गृहे क्षेत्रेयवा खले । भक्षयन्ती नं कथयेत्पिधन्वं चैव यत्सकम् ॥११४॥ अनेन विधिना यस्तु गोध्नो गामनुगच्छति । स गोहत्याकृतं पापं त्रिभिमासयंपोहति ॥११॥ यूपी कादशागाच दद्यासुचरिततः । अविद्यमाने सर्वस्व वेदविभयो निवेदयेत् ॥११६॥ उष्ण काल, शीत, वर्षा और अधिक वायु के चलने में यथा- शक्ति गौ का बचाव न करके (गाहत्यारा) आना वचार न करे ।।११।। और अपने वा दूसरे के घर मे वा खेत म वा खलियान में भक्षण करती हुई गौ को और दूध पीते हुवे उसके बच्चे को प्रसिद्ध न करे ॥११४|| इस विधान से जो गोहत्या वाला गौ की मेवा करता है वह उस गोहत्या के पाप को तीन महीने में करता है ।।११५|| अच्छे प्रकार प्रायश्चित्त व्रत करके एक बैल और दश गाय और इतना न हो तो अपना सर्वम्ब धन वेद के जानने वाले ब्राह्मण को दे देवे ॥११क्षा एतदेव व्रत कुयु रुपपातकिनो द्विजाः। अवकीणिवज्यं शुद्धयर्थं चान्द्रायणमथापि वा।११७ अवकीर्णी तु काणेन गर्दमेन चतुष्पथे।