पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६२३

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६२० मनुस्मृति भाषानुवाद अघ्रि कार्णायसीं दद्यात्स हत्या द्विजोचमः । पलाकमारकं पण्डे सैसकं चैकमापकम् ॥१३३॥ पतकुम्भ वराहे तु तिलद्रोणं तु तिचिरौ । शकेविहायनं वत्सं क्रौञ्चहत्वा विहायणम् ॥१३॥ ब्राह्मण सर्प को भार कर लोहे की करछल का दान करे। -र नपुंसक के मारने पर धान्यके पलाल का भार और १ माषा मात्र सीसा देवे ॥१३३।। सूकर के मर जाने पर घी भर घना और तीतर मरजाने मे चार आढक तिल और तोते के मर जाने पर दो वर्ष का बछड़ा और क्रौञ्च पक्षी को मारकर तीन वर्ष का (बत्स देवे) ॥१३॥ हत्ता हसं वलाका च वकं बहिणमेव च । वानरं श्येनभासौच स्पर्शयेब्राक्षणाय गाम् ।।१३५॥ पासोदबायं इत्वा पञ्चनीलान्वृषानगबम् । अजमेपावनड्वाहं खरं हलौकहायनम् ॥१३६॥ हंस, बलाका, बक, वानर, श्येन और मास इन को मारकर माह्मण को गाय देवे ।।१३५।। अश्व को मार कर वस्त्र देवे और गज को मार कर पांच नील बैल, बकरे और मेढ़े को मार कर बैल देवे और गधे को मार कर एक वर्ष का (वत्स) देवे ॥१३६॥ क्रव्यादांस्तु मृगान्हत्वा धेनुंदधास्पयस्विनीम् । अक्रव्यादान्यत्सतरीमुष्ट हत्वातु कृष्णलम् ॥१३७॥ जीनकामुकबरतावान्पृथग्दधाद्विशुद्धये । स्तुण पिवर्णानां नारीहत्या निवस्थिताः ॥१३८ ।