पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६२४

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काशाऽध्याय ६२१ प्रयकर देव ।। 'कन्याद त्यागादि का मार कर दूध वाली गौ और हरिणादि को मारकर दिया और अंटको मारकर १ कृष्णल मात्र (मोना) देवे ॥१३७|| चारो घणों की क्रमस बिगड़ी हुई स्त्रियों के विना जाने मर जाने पर शुद्धि के लिये चर्मपुट, अनुप बरा और मेप १६८ में से आगे यह श्लोक ५ पुस्तकों में अधिक मिलता है:- वर्णानामानुपू]ण त्रयाणामरिशेपतः। अमत्या च प्रमाप्य स्त्रीं शूद्रहत्याप्रसं चरेत् ] कम मे तीनो वणों में से किसी स्त्री को भूल मे मारने वाला शबहत्या का प्रायश्चित्त करे ) ||१३८॥ दानेन वधनिणेकं सादीनामशक्नुवन् । एकैकशवाकच्छ द्विजः पापापमुभाये ॥१३६|| अस्थिमतां तु संचानां प्रत सहस्तस्य प्रमापसे। पूणे चानस्यनस्थनां तु शूद्र हत्याबत चरेत् ॥१४०।। सादि के वध के प्रायश्चित्तार्थ दान करने का असमर्थ द्विज पाप दूर करने को एक एक कन्छ ब्रत करे ॥१३९॥ अस्थि वाले सइन्न क्षुद्र जीवों के वध मे शूद्र यय का प्रायश्चित्त करे और अस्थि रहित जीवों के एक गाड़ी भर के वध मे भी (उसी मायश्चित्त को करें)॥१४॥ किंचिदेव तु विप्राय दगदस्थिमतां वधे । अनस्थनां चैव हिंसायां प्राणायामेनशुध्यति ।।१४१॥ फलदानांतु वृक्षाणां छेदनेजप्य मुकशतम् । गुल्मपल्लीलतानां च पुप्पितानां च वीरुषाम् ॥१४२॥