पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६३१

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मनुस्मृति भाषानुवाद ज्ञातित्वेनानुपेयास्ताः पतति छुपयनधः ११७२। पिता की बहन की लड़की तथा माता की वहन की लड़की और माता के भाई की बेटी (इन ३ बहनों) के साथ गमन करने से चान्द्रायण व्रत करे ।।१७१।। इन तीनो को बुद्धिमान भार्या के अर्थ न महण करे। ज्ञाति होने से ये विवाह करने के अयोग्य हैं इनके साथ विवाह करने वाला नीचता को प्राप्त होजाता है ।१७२। अमानुषीपू पुरुष उदक्यायामयोनिषु । रेतः सिक्त्वा जले चैव कुच्छ' सान्तपनं चरेत् ॥१७३|| "मैथुनं तु समासेन्य पुसि योपिति वा द्विजः । गोयानेऽप्सु दिवा चैव सवासाः स्नानमाचरेत् ।।१७४० अमानुषी योनियो और रजस्वला और जल मे वीर्य को स्खलित करके पुरुष सान्तपन कृच्छत्रत करे ॥१७२।। "द्विज पुरुष मे वा स्त्री में मैथुन करके तथा वैल की गाड़ी मे या पानी मे वा दिनमे मेथुन करके सचैल स्नान करें। (१०४ वा श्लोक प्रक्षिप्त है क्योंकि इसमें कोई प्रायश्चित विशेष नहीं कहा "स्नानं मैथुनिनः स्मृतम्" यह तो विहित मैथुन मे भी स्नान का विधान है। फिर भला ऐसे बड़े अप्राकृत पाप कर्म में इतना अल्प म्नान और वस्त्र धो लेना मात्र भी कोई प्रायश्चित गिना जा सकता है ) ॥१७४।। चण्डालान्त्यस्त्रियो गत्वा मुक्त्वा च प्रतिगृह्य च । पतत्यज्ञानतो विप्रो ज्ञानात्साम्यंतु गच्छति ॥१७५।। विप्रदुष्टां स्त्रियं मा निरन्ध्याइकवेश्ममि । यत्पुंसः परदारेषु तच्चैना चारयेद् व्रतम् ॥१७६.। चण्डाल और नीच की स्त्रियो से गमन और इनके यहां