पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६३७

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६३४ मनुस्मृति भाषानुवाद जूता, सियार खर, मनुष्य घोड़ा. उंट, सूकर वा अन्य माम वासी मामाहारियों से काटा हुवा मनुष्य प्राणायाम से शुद्ध होता है। (१९९ वे से आगे एक पुस्तक में यह श्लोक अधिक है :- [ शुना प्रातापलीहस्य दन्तैर्विदलितस्य च । अद्भिः प्रक्षालनं प्रोक्तमग्निना चोपचलनम् ] || अर्थात् जो वस्तु कुत्तने मुंघी चादी वा दांतोसे चाबी हो, उस का पानी से धोना और अग्नि से पकाना कहा है ) ॥१९९|| पठानकालना मासं सविताजप एव वा। होमाच सकशा नित्यपपात्यानां दिशोधनम् २०० पंक्ति रहितों का विशेष करके शोधन यह कहा है कि तीन दिन उपवास करके एक मास तक सारडाल में भाजन करना और वेद- संहिता का पाठ और सम्पूर्ण होमों को करना (आठ पुस्तको मे सकला-शाकला पाठ भेद है) |२०|| उष्ट्यानं समारुह्य खरयानं तु कामतः । स्नात्वा तु विप्रोदिग्वासाः प्राणायामेन शुध्यति॥२०१॥ विनाद्भिरप्सु बाप्यातः शारीरं सन्निवेश्य च । सचलो बहिराप्लुत्य गामालम्य विशुध्यति ।२०२। ऊंट तथा गो की सवारी पर इच्छा से चढ़ कर ब्राह्मण नग्न हो. स्नान करके प्राणायाम से शुद्ध होता है ।।२०१॥ बिना जल से या जल मे ही मल मृत्रादि करके चाहे रोगी भी हो, वस्त्र के सहित नगर के बाहर (नदी में) स्नान करके और पृथ्वी को छकर शुद्ध होता है ।।