पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६४०

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एकादशाऽध्यार प्रातः काल और तीन दिन सायं काल भोजन करे और तीन दिन अयाचित अन्न का भोजन करे तथा परले तीन दिन उपवास करे, (यह बारह दिन का एक प्राजापत्य व्रत होता है) ॥२१॥ गोमूत्र गोवर, दुग्ध दधि, घृत और कुशा के पानी का एक दिन भक्षण करे और इसके पश्चात् एक दिन रात्रि का उपवास करे इसको "सान्तपन कृच्छ " कहा है ॥२१२|| एकैकं प्रासमश्नीयात्व्यहाणि त्रीणि पूर्ववत् । यहं चोपबसेइन्स्यमतिकृच्छ चरन्द्विजः ॥२१३॥ तप्तकन्छ चरन् विप्रो जलचीरवतानिज्ञान् । प्रतिव्यह निवेदुष्णान्सकृत्स्नायी समाहित-॥२१४॥ (कच्छव्रत) "अतिकृच्छ आचरण करने वाला ३ सायं ३ प्रातः ३ अयोचित इन ९ दिन में एक एक प्रास भोजन करे और अन्त के ३ दिन उपवास करे ।२१३|| 'तप्तकृच्छ" का आचरण करने वाला द्विज, स्थिर चित्त हुवा एक बार स्नान करके तीन दिन उस जल पीवे और तीन दिन उष्ण दूध, इमी प्रकार तीन दिन उन्य घृत और तीन दिन उष्ण वायु पीवे ।।२१४|| (२१४ से आगे एक पुस्तक मे यह श्लोक अधिक है [अपी पिवेच्च त्रिपलं पलनेच मर्पिपः । पयः पिवेत्त त्रिपलं विमानं चाकमान:ll] जल ३ पल घृत १ पल दूध ३ पल, उस्त प्रमाण से ३ मात्रा उस २ दिन मे उस २ वस्तु की] पिया करें) ।। यतात्मनाप्रमत्तस्य द्वादशाहरभोजनम् । राका नाम कृच्छोयं सपा पिनोदन ॥२१॥