पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६४३

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मनुस्मृति भाषानुवाइ भूमि पर नीचे सोने। ती ब्रमवई को धारण करने वाला तथा गुरु देव द्विज का पूजन करने वाला हो ॥२२४॥ सावित्री च जपेनित्यं पवित्राणि चशक्तितः । सर्वेग्वेव व्रतेम्वेवं प्रायश्चित्वार्थमाहतः ।२२५१ एवैद्विजातयः शोच्या प्रवैराविकृतैनसः। अनाविष्कृतपापास्तु मन्न हैमैिश्च शोधयेत् ।।२२६॥ यथाशक्ति निन्य गायत्री और अन्य पवित्र मन्त्रों को जपे, सम्पूर्ण ब्रतों में इसी प्रकार प्रायश्चित्त के लिये श्रद्धा से अनुष्ठान करे ।।२२। लोक विदित पाप वाले द्विजाति इन व्रतां से शोधने योग्य हैं और गुर पाप बानो को मन्त्रा और होमो से शुद्ध करे ॥२२॥ ख्यापनेनानापेन तपसाध्ययनेन च । पापफन्मुच्यते पापाचयादानेन चापदि ॥२२७॥ यथा यथा नगेऽधर्म स्वयं कत्वाऽनुभाषते । तथा तथा त्वचेचाहिस्तेनाधर्मेण मुच्यते ॥२२॥ पाप करने वाला पापके प्रकाश करने और पश्चाताप करने तथा तप और अध्ययन करने से और यदि इन में से असमर्थ हो तो दान करने से पाप से छूटता है ।।२२।। मनुष्य जैसे जैसे अधर्म करके उसे कहना है वैसे वैसे उस अधर्म से छुटता जैसे सर्प कांचली से ||२२८॥ यथा यथा मनस्तस्य दुष्कृतं कर्म गर्हति । तथा ताथ शरीरं तरेना धर्मेण मुच्यते ॥२२६||